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डायबिटीज़
खून में चीनी (बल्ड शुगर) को नियंत्रण न कर पाने के बीमारी को “डायबिटीज़” कहते हैं। डायबिटीज़ की बीमारी एक खतरनाक रोग है। यह बीमारी में हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है।रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होते हैं। इन मरीजों में आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज़ होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण इस प्रकार हैं:
डायबिटीज़
खून में चीनी (बल्ड शुगर) को नियंत्रण न कर पाने के बीमारी को “डायबिटीज़” कहते हैं। डायबिटीज़ की बीमारी एक खतरनाक रोग है। यह बीमारी में हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है।रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होते हैं। इन मरीजों में आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज़ होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण इस प्रकार हैं:
- इंसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।
- इंसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।
- पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।
- यह रोग, खून के जांच से पता चलता है।
- खून में चीनी (बल्ड शुगर) को सामान्य स्तर में नियंत्रित होना आवश्यक है। इसके लिये शरीर में अनेक अंग और होरमोंस मिलकर काम करते हैं। अगर आपका शरीर यह नियंत्रण के शक्ति खो देता है, तो आपको “डायबिटीज़” हो जाता है।
- आधिकांश समय (90%) यह गर्भ के शुरुआत में हो सकता है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आपको गर्भ के अंत में “डायबिटीज़” नहीं हो सकता है।
- कुछ लोग को पहले से “डायबिटीज़” होता है, जिसके बारे में वो अवगत नहीं होते हैं। यह जब गर्भ के दौरान बढ़ जाता है, तो जांच के बाद पहचाना जाता है।
- गर्भ के होरमोंस जैसे कि “प्रोजेस्टेरोन” और “प्लासेंटल लेक्टोजन”, शरीर में उत्तपन “इंसुलिन” के विपरीत काम करते हैं। यह आपको “डायबिटीज़” का अवस्था दे सकता है।
- गर्भ के अनेक समस्याओं में से “जेस्टेशनल डायबिटीज़” सबसे ज्यादा लोगों में होता है।
- “जेस्टेशनल डायबिटीज़” करीब 20 में से 1 मां को हो सकता है।
- भारतीय लोगों में “जेस्टेशनल डायबिटीज़” अधिक होता है।
- अगर मां को उपर लिखे हुय कोई भी स्थिती है, तो उसका “जेस्टेशनल डायबिटीज़” होने का रिस्क और बढ़ जाता है।
- गर्भ के दौरान अगर आपको “डायबिटीज़” हो जाता है, तब उसे “गर्भ में डायबिटीज़” या “जेस्टेशनल डायबिटीज़” कहते हैं। इसके लिये यह जरूरी नहीं है कि आपको उसके लिये इंसुलिन का दवा लेना पड़े या नहीं, या यह रोग गर्भ के बाद रहता है या नहीं।
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